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आपके गढ़ कहाँ हैं?

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2 कुरिन्थियों 10:3-5 क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते। 4 क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं। 5 सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।

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आपके गढ़ कहाँ हैं?


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जब आप जीवन के पथ पर बाधाओं का सामना करते हैं, तो आपकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया क्या होती है? आप उनका  सामना कैसे करते हैं? और जब आप अपने अतीत की तरफ पीछे मुड़ कर देखते हैं, तो क्या सोचते हैं ?

बाधाएँ आम तौर पर तनाव और पीड़ा पैदा करती हैं। अगर ईमानदारी से कहें तो ऐसी परिस्थितियों में, हम हमेशा सर्वोत्तम विकल्प नहीं चुनते हैं। और दूसरी बात… सभी बाधाएं हमें तोड़ने या गिराने के लिए नहीं होती हैं। अक्सर, बहुत सी बाधाएँ हमारे भीतर होती हैं, जिन्हे पहले जीतना जरूरी होता है।

हम अक्सर सोचते हैं की काली अंधेरी आत्मिक शक्तियों के गढ़ पर हम अपनी ताकत से विजय पा सकते हैं। परंतु नहीं:

2 कुरिन्थियों 10:3-5 क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते।
क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं।
सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।

इसलिए नए नियम में “गढ़” शब्द का प्रयोग केवल तभी किया गया है, जब यह विश्वासियों के दिलों के अंदर बसे घमंड  के बारे में बात करता है – वह आप और मैं हैं! और हमारे भीतर यह गढ़ परमेश्वर के बारे में हमारे ज्ञान के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं। कितना डरावना सच है !

मैं ऐसे गढ़ के बारे में सोचता हूं जैसे कि हमारा कोई विश्वास, पवित्रशास्त्र के विपरीत हमारा व्यवहार, जिसे हम इतनी मजबूती से पकड़े रहते हैं, कि हम कितनी भी कोशिश कर लें, पर उन्हें छोड़ नहीं पाते। वह ज्ञान और आशीष जिसे देने की परमेश्वर ने हमारे लिए योजना बनाई है।

यही कारण है कि परमेश्वर चाहते हैं कि हम मसीह के नाम में हर विचार को बंदी बना लें।

और यह उसका ताज़ा वचन है। आज …आपके  लिए…।